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अब वैस्विक बाजार में रुपया देगा डॉलर स्वीकृति को चुनौती, 35 से ज्यादा देशो ने दिखायी रुपया से व्यापार में रुचि, भारत सरकार का प्लान-आपदा में अवसर की तलाश

डॉलर की बादशाहत

जैसा के वैस्विक व्यापार को लेकर अनिश्चित्ता जारी है कई बडे देशो की करेंसी डॉलर के आगे गिरती जा रही है कुछ ऐसा ही हाल भारतीय रुपये का भी है दरसल बैंक और एक्सपोर्ट हाउस के बीच डॉलर की भारी मांग इसका एक कारण है| एक्सपर्ट्स की माने तो चाइना अमेरिका ट्रेड वॉर भी भारती रुपये के खस्ता हाल का जिमदार है 

भारतीय मुद्रा सहित दुनियाभर की करेंसी इस समय डॉलर के सामने पानी भर रही है. इसका कारण ये नहीं कि किसी देश की मुद्रा कमजोर हो रही है, बल्कि डॉलर में आ रही मजबूती की वजह से उस मुद्रा पर दबाव है. आलम ये है कि अमेरिका डॉलर को मजबूत बनाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है, जिसका खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ रहा.

दुनिया भर में कुल 185 मुद्राएं हैं जिनमे काई सारी करेंसी काफी मजबूत हैं, वैसे चीन की युआन और यूरो जैसी करेंसी ने डॉलर को कड़ी टक्कर दी है लेकिन वैस्विक स्वीकृति केवल डॉलर को ही मिली है, बाकी करेंसी बहुत कोसिस के बवजूद भी अपना सिक्का जमाने में असमर्थ ही हैं और डॉलर की बादशाहत जारी है अगर आंकड़ों की बात करें तो दुनिया का 85 फिसदी व्यापार डॉलर में होता है और 40 फिसदी लोन डॉलर में दिया जाता है यही कारण है कि डॉलर को वैश्विक मुद्रा का दरजा दिया जाता है

डॉलर के मुकाबले कमजोर होते रुपये का संकट भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. दुनियाभर के बाजारों में मंदी के बावजूद भारतीय बाजार किसी तरह अपने पैरों पर खड़ा होता नजर आ रहा है, लेकिन कमजोर करेंसी बाजारों को भूत की तरह डरा रही है. अब सवाल उठता है कि क्या अमेरिका जानबूझकर डॉलर को मजबूत कर रहा है या फिर अमेरिका को अपनी मंदी से ज्यादा डॉलर के कमजोर होने का डर है.

ब्रिक्स देशों की सुधार की कोशिशें

ब्रिक्‍स देश स्विफ्ट ट्रांजेक्शन के तहत डॉलर के दबदबे को कम करने की कोशिशें कर रहे हैं लेकिन अभी तक कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं. मजबूत होते डॉलर की वजह से भारत समेत दुनिया की इमरजिंग इकोनॉमी को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. चीन भारत और रूस ने ज्यादा से ज्यादा लोकल करेंसी में ट्रांजेक्शन की इच्छा जताई है. लेकिन अमेरिका अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए किसी भी कीमत पर डॉलर को कमजोर नहीं होने दे रहा है. इस बात को ऐसे समझिए कि अमेरिकी फेड ने ब्याज दरें बढ़ाई तो बाकी देशों को भी ब्याज दरों को बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. अब पूरी दुनिया अमेरिका की इस डॉलर दादागिरी से मुक्त होने के लिए झटपटा रही है. रूस-भारत समेत दुनिया के बाकी देशों के साथ लोकल करेंसी में कारोबार करने के लिए तैयार हैं लेकिन अमेरिका नहीं चाहता कि उसका डॉलर डॉमिनेंस किसी भी तरह से कम हो.

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूस से तेल खरीदा, जिस पर अमेरिका की नजर टेढ़ी हो गई है. अमेरिका को तेल के बजाए इस बात की ज्यादा चिंता है कि भारत, चीन और बाकी विकासशील देश कहीं आपस में मिलकर अपनी-अपनी करेंसी में व्यापार करने लगे तो उसके लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी. ऐसा हुआ तो डॉलर का अंतरराष्ट्रीय करेंसी के तौर पर बना रूतबा कम हो जाएगा.

इस मुद्रा सशक्तिकरण में भारत का कदम

Rupee Become International Currency Like Dollar: दुनिया की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद पीएम मोदी के सपनों का भारत ऊंचाइयों की नई उड़ान पर है। प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षा रुपये को डॉलर का प्रतिद्वंदी बनाना है। जी हां, वही डॉलर जो वर्षों से पूरी दुनिया पर राज करता आ रहा है, वही डॉलर जो दुनिया की अर्थव्यवस्था और बाजार की दिशा तय करता है, वही डॉलर जो वैश्विक बाजार का दादा है। मगर अब पीएम मोदी ने ऐसा प्लान बनाया है कि डॉलर की दादागीरी खतरे में है। प्रधानमंत्री के इस प्लान के बारे में जानकर अमेरिका से लेकर चीन तक में खलबली मच गई है, क्योंकि पहली बार किसी देश की करेंसी ने दुनिया की बादशाहत को ललकारा है।

पीएम मोदी जब कोई बात कहते हैं तो उसके पीछे उनकी सीक्रेट प्लानिंग होती है। यह प्रधानमंत्री के मजबूत अर्थशास्त्र का ही नतीजा है कि जब चीन, रूस, ब्रिटेन और जर्मनी समेत दुनिया के तमाम बड़े देशों की अर्थव्यवस्था में ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिल रही है और श्रीलंका से लेकर पाकिस्तान और वेनेजुएला जैसे देशों में हाहाकार मचा है। मगर ठीक इसी दौरान वैश्विक मंदी को मात देते हुए भारत दुनिया की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन बैठा। अब भारत की नजर दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने पर है। वैश्विक मंदी के दौरान तेज गति से भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को देखकर दुनिया हैरान है।

रुपया बनेगा डॉलर का विकल्प

पीएम मोदी का प्लान सफल रहा तो जल्द ही रुपये को डॉलर का विकल्प बनते देखा जा सकेगा। डॉलर की बादशाहत इतनी जल्दी खत्म तो नहीं होने वाली, लेकिन रुपया के अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बन जाने पर उसे कड़ा प्रतिद्वंदी जरूर मिल जाएगा। इसके लिए भारत ने तेजी से काम करना भी शुरू कर दिया है। ताकि रुपया जल्द ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में अपनी पहचान बना सके। इसके लिए भारतीय बैंकों ने बांग्लादेश और अफ्रीकी देशों के साथ रुपये में कारोबार शुरू करने की संभावना तलाशनी भी शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार भारत अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश के अलावा मिस्र जैसे कुछ अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार रुपये में ही संचालित करने की तैयारी में है। इसके लिए बैंक जुटे हुए हैं। रुपये में विदेशी कारोबार होने से विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में होने वाली उठापटक के असर से बचने में भी मदद मिलेगी।

इन देशों के साथ रुपये में शुरू हो चुका व्यापार

वित्त मंत्रालय की हाल में हुई एक बैठक में सभी हितधारकों से अन्य देशों के साथ भी रुपये में विदेशी कारोबार की सुविधा देने की संभावना तलाशने को कहा गया है। फिलहाल रूस, मॉरीशस व श्रीलंका के साथ भारत रुपये में कारोबार कर रहा है। इसके लिए बैंकों के विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते (एसआरवीए) का इस्तेमाल किया जाता है। अब तक 11 बैंकों ने इस तरह के 18 खाते खोले हैं। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत ने पिछले वित्त वर्ष में मिस्र से 352 करोड़ डॉलर, अल्जीरिया से 100 करोड़ डॉलर और अंगोला से 272 करोड़ डॉलर की वस्तुओं का आयात किया था। इसी तरह बांग्लादेश से भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में 197 करोड़ डॉलर का आयात किया था। अब भारत सऊदी अरब, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया और आस्ट्रेलिया जैसे देशों से भी रुपये में कारोबार करने के करीब पहुंच चुका है।

भारत के प्लान से घबराया अमेरिका

रुपये से डॉलर को चुनौती देने से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के माथे पर भी शिकन आ गई है। पहली बार दुनिया की किसी करेंसी ने सीधे डॉलर को चुनौती देने का प्लान बनाया है। सूत्रों के अनुसार भारत अब तक करीब 18 देशों के साथ रुपये में कारोबार शुरू करने पर सहमति प्राप्त कर चुका है। जल्द ही भारत इस आंकड़े को 50 से अधिक देशों के साथ समझौता करने की संभावनाएं तलाश रहा है। इससे भारत का सबसे बड़ा दुश्मन चीन भी घबरा गया है।

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